देवपूजा_के_विषय_में_राजा_या_सरकार_का_कर्तव्य

#देवपूजा_के_विषय_में_राजा_या_सरकार_का_कर्तव्य
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भारतवर्ष का संविधान ऐसे व्यक्तियों ने बनाया जो राष्ट्र के चरित्र निर्माण में धर्म की उपयोगिता से अनभिज्ञ नहीं थे। वस्तुतः परमात्मा में आस्था रखने वाले आस्तिक और धर्म पारायण नागरिक पाप, दुराचार और अपराध से दूर रहते हैं । और सदाचारी तथा कर्तव्य परायण होकर राष्ट्र के निर्माण और प्रगति में योगदान देते हैं। भारतीय लोकतंत्र की सरकार तथाकथित धर्मनिरपेक्ष संविधान से नियंत्रित होने के कारण न तो नागरिक को धर्म आचरण का निर्देश देती है और ना राष्ट्र के कल्याण हेतु देव पूजा और यज्ञ- यागादि जैसे कोई धार्मिक कृत्य ही राष्ट्रीय स्तर पर करती है किंतु प्राचीन काल में भारतवर्ष के राजा ना केवल अपने व्यक्तिगत कल्याण हेतु अपितु संपूर्ण राष्ट्र के कल्याण के लिए मंदिरों का निर्माण देवों की प्रतिष्ठा और उनकी पूजा की व्यवस्था करते थे विष्णु धर्मोत्तर पुराण में कहा गया है कि राजा के द्वारा देवों की पूजा किए जाने पर वे देवता समस्त पृथ्वी का पालन करते हैं।
#पालयन्ति_यही_कुत्सनां_पूजिता_पृथिवीक्षिता।
                          (#विष्णुधर्मोत्तर-२!३१!४)
देवों के पूजन से राजा के राष्ट्र की वृद्धि होती है जिस राजा के राष्ट्र में सदैव देवों की पूजा होती है वहां अतिवृष्टि, अनावृष्टि फसल को छती पहुंचाने वाले चूहे, टिड्डे, और तोते आदि तथा राक्षस,पिशाच पड़ोसी राष्ट्रों के शत्रु राजा एवं अन्य प्रकार की ईतियाँ(विपदायें) समाप्त हो जाती है।  आचार्य मण्डण मिश्र
#देवसम्पूजनाद्_राम_वृद्धि_समुपगच्छति।
#राज्ञस्तु_विषये_यस्य_पूजयन्ते_सततं_सुरा:।।
#अतिवृष्टिरनावृष्टिर्मूषक: शलभा: शुका:।
#राक्षसाश्च_पिशाचाश्च_रिपवश्च_सुदारुणा:।।
#ईतयश्च_तथैवान्या_न_भवन्ति_द्विजोत्त
                 (#विष्णुधर्मोत्तर-२!३१!४७-४९)
राजा के लिए यह निर्देश है कि वह स्वयं भले ही किसी एक देवता का भक्त हो तथापि वह अपने राष्ट्र में समस्त देवों का पूजन करें।
#एकमप्याश्रितो_देवं_राजा_भार्गवनन्दन।
#सर्वासां_पूजनं_कुर्याद्_देवतानामसंशयम्।।
                                   (#विष्णुधर्मोत्तर-२!३१!८!)
राजा का यह भी कर्तव्य रहा है कि वह प्रजा से भी देवों का पूजन करावे। पुराणों में राजा के लिए यह निर्देश है कि उसके राष्ट्र में जो व्यक्ति धन अर्जित करके भी देवों का पूजन नहीं करता उसके सर्वस्व का अपहरण करके राजा उसको राष्ट्र से निर्वासित कर दे।
#यस्तु_दृव्यार्जनं_कृत्वा_नार्चयेत्_ब्राह्मणान्_सुरान्।
#सर्वस्वमपहृत्यैनं_राजा_राष्ट्रात्_प्रवासयेत्।।
                              (#पद्मपुराण-३!५७!५८!-९)
राजाओं और धनी व्यक्तियों के विषय में यह कहा गया है कि वह देवालयों का निर्माण करें। देवाले निर्माण से इष्टधर्म और पूर्तधर्म दोनों का पुण्य फल मिलता है।
#देवालयानि_कुर्वीत_देवपूजारतो_नृप:।
                                         (#अग्नि-२२२!११)
#आढ्यस्तु_कारयेद्_विष्णोर्मन्दिराणि_दृढानि_च।।
                                       (#स्कन्द -२!९!२२!३८)
#इष्टापूर्तेन_लभ्यन्ते_ये_लोकास्तान्_बुभूषता।
#देवानामालय: कार्यो द्वयमप्यत्र दृश्यते।। 
 (#बृहत्संहिता-५६!२) (#विष्णुधर्मोत्तर -३!१!३-४)
पुराणों में यह भी स्पष्ट रूप से कहा गया है कि देवताओं की स्थापना से रहित नगर, ग्राम, दुर्ग अथवा गृह आदि का भोग भूत प्रेत पिचास आदि करते हैं। और वहां के निवासी रोग आदि नाना कष्टों से पीड़ित रहते हैं। जिस नगर, ग्राम आदि में देवताओं की स्थापना की गई हो वह विजयप्रद तथा भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति में सहायक होता है। अदा नगर आदि की रक्षा हेतु इंद्र, श्रीविष्णु आदि देवों की स्थापना करनी चाहिए। 
#नाकेशविष्ण्वादिधामानि_रक्षार्थ_नगरस्य_च।
#निर्दैवतन्तु_नगरग्रामदुर्गगृहादिकम्।। 
#भुज्यते_तत्_पिशाचाद्यै: परिभूयते।
#नगरादि_सदैवं_हि_जयदं_भुक्तिमुक्तिदम्।।
                    (#अग्निपुराण-१०६!१६!-१७)
इसलिए नगर ग्राम आदि के निर्माण के पूर्व वहां पर देवालयों का निर्माण अवश्य कर लेना चाहिए।
#देवतावेश्मपूर्वाणि_नगराणि_कलौ_युगे।
#कर्तव्यानि_महीपाल: स्वर्गलोकमभीप्सुभि:।।
                   (#विष्णुधर्मोत्तर-३!९३!६-७)

🌺🙏🌺जय श्री राधे 🌺🙏🌺

Comments

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